तुलसीदास (Tulsidas) का जीवन परिचय- हनुमान जी से मुलाकात | Tulsidas ka Jivan Parichay

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Tulsidas Jivan parichay

स्वागत है पाठकों, आज हम पढ़ने जा रहे हैं गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय के बारे में, जानेंगे उनकी रचनाएं, साथ ही क्यों उन्हें कहा जाता है बाल्मीकि जी की अवतार .

तुलसीदास जी का जन्म चरित्र के बारे में प्रमाणित अक्षांश उनकी रचनाओं रचनाओं की उक्तियाँ से मिलती है, जो उनकी जीवन संबंधित तथ्यों को प्रमाणित करती है।

तुलसीदास का बचपन अनेक अनेक बताओ के बीच व्यतीत हुआ था। बचपन से ही बहुत सारी समस्याओं से जूझते आ रहे थे। जन्म के पश्चात ही उनके माता-पिता उनको परित्याग कर दिए थे।

तुलसीदास जी का परिचय (Tulsidas Jivan Parichay)

तुलसीदास जी एक महान भारतीय कवि, दार्शनिक और भगवान राम के सच्चे अनुयायीथे। अब तक के लिखे गए सबसे महान महाकाव्यों में से एक रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास हैं। तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईसवी को हुआ था उनका पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था। कुछ लोग उन्हें मूल रामायण रचयिता वाल्मीकि के अवतार मानते हैं।

तुलसीदास का जीवन परिचय (Biography of Tulsidas in Hindi)

गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 13 अगस्त 1532 ईसवी (सं. 1589 वि.) को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान  यह कहते हैं कि उनका जन्म एटा जिले के सोरो नामक स्थान में हुआ था। लेकिन दोस्तों अनेक पुस्तक में हमें उनका जन्म बांदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था लिखा गया है और आप भी इस स्थान को याद रखें.

तुलसीदास का पिता का नाम आत्माराम दुबे है और माता का नाम हुलसी था। इनका जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में होने के कारण और बचपन से ही 32 दांत लेकर पैदा होने के कारण उनके माता-पिता ने उनका जन्म होते ही परित्याग कर दिया था।

गोस्वामी पैदा पैदा होने के समय रोए नहीं थे। उनके मुंह में पूरे 32 के 32 दांत थे। और अमंगल तिथि में जन्म होने के कारण उनके माता-पिता समझे कि यह एक असुर है जो हमारे घर जन्म हुआ है। इसी कारण से गोस्वामी तुलसीदास को जन्म होते ही उनके माता-पिता छोड़ दिए थे।

तुलसीदास का शुरुआती जीवन

उनका बचपन अनेक अपदाओ में व्यतीत हुआ है। एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा गया है कि तुलसीदास का जन्म होते समय वह रोने के बजाय राम नाम जप किए थे। इसलिए उनका नाम राम बोला रख दिया गया। वह पैदा होते समय 5 साल के लड़के जैसा दिखते थे।  यह कथा वह स्वयं अपने विनयपत्रिका में कहा है।

तुलसीदास अपनी रचनाएं कवितावली तथा विनयपत्रिका में बताए थे कि जन्म होने के चौथी रात के बाद उनके पिता का मृत्यु हो गया था। कैसे जन्म होने के बाद उनके माता-पिता ने उनका परित्याग कर दिया था।

उनकी मां हुलसी की दासी, नाम चुनिया जो तुलसीदास को अपने साथ लेकर शहर हरिपुर ले आई थी और लालन पालन किए थे। रामबोले को महज 5 से 6 ( साड़े 5 वर्ष) वर्ष देखभाल करने के बाद वह भी स्वर्ग सिधार गई थी।

आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका जीवन किस परिस्थिति में बीता होगा कि जिसका जन्म होते ही घर वाले छोड़ देते हैं और लालन-पालन करने वाली की भी मृत्यु हो जाती है। कहा जाता है कि स्वयं मां पार्वती जी ने ब्राह्मण का रूप धारण करके उनके लालन-पालन किए थे।

चुनिया दासी की मृत्यु के बाद रामबोला अनाथ हो गया था और वह घर घर जाकर भिक्षा मांगता था।  कहा जाता है देवी पार्वती ब्राह्मण का रूप धारण करके गोस्वामी का लालन-पालन किए थे।

तुलसीदास जी का शिक्षा

तुलसीदास को बैरागी दीक्षा दी गई और उनका नाम रामबोला से तुलसीदास में नामकरण हुआ।  उन्होंने अपने शिक्षा का आरंभ 7 साल की उम्र में नरहरीदास द्वारा अयोध्या से की । 

अयोध्या में ही उन्होंने अपनी श्रेष्ठ रचना रामचरितमानस  लिखी थी और वहां उल्लेख किया है कि उनके गुरु उन्हें बार-बार रामायण सुनाई थी। उनके शिक्षा तथा जीवन के बारे में उनकी रचनाओं से ही उल्लेख मिलता है।

तुलसीदास जब 15 या 16 साल के हुए उन्होंने अयोध्या से वाराणसी आ गए और अपने गुरु शेष सनातन  से वाराणसी के पंच घाट में रहते हुए संस्कृत व्याकरण, चार वेद, छह वेदांग, हिंदी साहित्य तथा दर्शन और ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान अर्जन किया था। फिर वह अपने गुरु के अनुमति से अपने घर चित्रकूट वापस आ गए थे।

तुलसीदास जी का विवाह, पत्नी

गोस्वामी तुलसीदास का विवाह बुद्धिमती से हुआ था दिनेश रत्नावली नाम से भी जाने जाते हैं। उनका विवाह 1583 ईसवी को जेष्ठ मास में हुआ था।  तुलसीदास अपने पत्नी को बहुत प्यार करते थे।

दोनों के जीवन में पुत्र का सुख प्राप्त हुआ था। तारक नामक इकलौता पुत्र था। लेकिन शैशवावस्था (जन्म से लेकर 6 वर्ष तक की आयु ) में ही मृत्यु हो गया था।

तुलसीदास अपने पत्नी को बहुत चाहते थे उनकी भावनाएं पूरी तरह से अपनी पत्नी के साथ जुड़ी हुई थी। एक कहानी से पता चलता है कि तुलसीदास जी ने अपनी पत्नी को इतना प्रेम करते थे कि वह अपने ससुराल के बगल के घर में रहने लगे थे। हालांकि जब यह बात उनके पत्नी को पता चला, तब रत्नावली ने उनके प्यार को तिरस्कार करते हुए कहा कि जितना प्रेम मुझे करते हो उतना अपने प्रभु राम से करना चाहिए।

अपनी पत्नी से यह बात सुनते ही वह सांसारिक मोह माया छोड़ कर एक तपस्वी का जीवन यापन करने लगे। और अगले कुछ साल वह भारत की विभिन्न स्थानों में भ्रमण करने लगे। अनेक तीर्थ स्थल जाकर भगवान श्रीराम को खोजने लगे।

तुलसीदास जी की मृत्यु

तुलसीदास जी 91 वर्ष की उम्र में सन् 1623 में पवित्र भूमि बनारस के अस्सी घाट तट पर श्रावण के महीने में परलोक सिधार गए। निधन होने से पहले वह कई तीर्थ स्थानों में भ्रमण किए थे और भगवान श्रीराम को अपने मुर्दा में बसा लिए थे।

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तुलसीदास का जीवन परिचय संस्कृत में (short Bio)

नामगोस्वामी तुलसीदास
वास्तव नाम रामबोला दुबे
जन्म1532 ईसवी
पिता का नामआत्माराम दुबे
माता का नामहुलसी दुबे
जन्म स्थानराजापुर बांदा जिले उत्तर प्रदेश
मृत्यु31 जुलाई 1623
मृत्यु स्थानवाराणसी के अस्सी घाट
आयु91 वर्ष मृत्यु तक
विवाह तारीखजस्ट मौस मास 1583 में
पत्नी का नामबुद्धिमती (रत्नावली- दूसरा नाम)
बेटे का नाम तारका (शैशवावस्था मे मौत)
जातिब्राम्हण
नागरिकता भारतीय
भाषा अवधि
गुरु (Guru) नरहरी दास

तुलसीदास जी की लेखन कार्य आरंभ, रचनाएं

तुलसीदास जी ने अपना लेखन कार्य 1574 में आरंभ किए थे। उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सारी रचनाएं की है। दुनिया उन्हें एक महान कवि के रूप में पहचानती है । उनकी सारी रचनाएं मूल्यवान है। लेकिन उनकी रचित राम चरित मानस सर्वश्रेष्ठ रचना है। जिसे आज प्रमाणित धार्मिक ग्रंथ के रूप में माना जाता है।

वह श्री राम  के बहुत बड़े भक्त है। बहुत सी रचनाओं में प्रभु श्री राम के बारे में उल्लेख मिलता है। उन्होंने रामचरितमानस में भगवान श्री राम को समर्पित एक महान महाकाव्य है । इसके अलावा उन्होंने बहुत सारी सुंदर कविताएं लिखी है।

Tulsidas Jivan parichay
तुलसीदास का जीवन परिचय

तुलसीदास द्वारा रचित कुछ अन्य महान साहित्यिक कृतियों में दोहावली,  गीतावली, कृष्णावली, विनयपत्रिका कवितावली, और देव हनुमान की स्तुति की गई सम्मानित कविता हनुमान चालीसा शामिल है।

तुलसीदास जी के लघु रचनाओं में वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, रामलला नहछू, बरवै रामायण, पार्वती मंगल और संकट मोचन जैसी महान कृतियां शामिल हैं।

तुलसीदास जी बाल्मीकि का अवतार

बहुत सारे लोग कहते हैं कि तुलसीदास जी बाल्मीकि के अवतार थे। हिंदू शास्त्र भविष्योत्तर पुराण के अनुसार बताया गया है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को बताएं कि कैसे कलयुग में महर्षि बाल्मीकि अवतार लेंगे।

महर्षि बाल्मीकि जी ने मूल रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की थी आज से कई साल पहले, यह रामायण उस समय के वैदिक संस्कृत में लिखा गया था। तब की भाषा और आज की भाषाओं में जमीन-आसमान अंतर है। उस समय के संस्कृत में लिखे गए रामायण में कठिन से कठिन शब्दों तथा व्याकरण का उपयोग करके लिखा गया था जिसका समझ पाना आज के साधारण लोगों के बस में नहीं है।

मूल बाल्मीकि रामायण ग्राम जो एक प्रमाणित धार्मिक ग्रंथ है उसे तुलसीदास जी ने आज से लगभग 500 साल पहले रामचरितमानस में रचना की। जिसको समझना सबके लिए संभव हुआ।

कहा जाता है कि रामचरितमानस रचना करने का कार्यभार भगवान शिव और हनुमान जी ने तुलसीदास को दिया था। और बहुत सारे लोग कहते हैं कि वह महर्षि बाल्मीकि के अवतार है इसीलिए उन्होंने रामचरितमानस की रचना की।

तुलसीदास जी की  हनुमान और प्रभु श्रीराम से मुलाकात

तुलसीदास जी की ऐसे कई रचनाओं में हनुमान जी के साथ-साथ याद करने का उल्लेख किया गया है। उन्होंने भगवान हनुमान को वाराणसी में दर्शन किए थे। पर उनके चरणों में गिर के अपनी भाव व्यक्त किए थे। हनुमान जी ने भी आशीर्वाद दिए थे।

अपनी भाव को व्यक्त करते हुए तुलसीदास जी ने हनुमान को कहा था कि वाह प्रभु श्रीराम के बहुत बड़े भक्त है उनके दर्शन करना चाहते हैं।

हनुमान जी ने तुलसीदास को इस का मार्गदर्शन की और कहे कि उन्हें चित्रकूट जाना चाहिए वहां है प्रभु श्री राम का दर्शन प्राप्त होगा।

तुलसीदास जी ने अपनी गीतावली में उल्लेख किए है कि उन्होंने हनुमान जी के कहे अनुसार चित्रकूट की राम घाट स्थित आश्रम में रहने लगे। एक दिन वह कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करते समय घोड़े पर सवार दो राजकुमार दिखे थे लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाया था। वह प्रभु श्री राम को पोस्टर रूप से सामने से देखना चाहते थे।

अगले दिन की सुबह जब वह चंदन का लेप बना रहे थे तब भगवान श्रीराम से उनकी मुलाकात हुई थी। भगवान श्रीराम उनके सामने आए और माथे में चंदन का तिलक लगाने के लिए मांगे, तुलसीदास का मनोकामना पूर्ण हुआ वह इतनी प्रसन्ना हुए की वह चंदन के बारे में भी भूल गए।

स्वयं भगवान श्रीराम ने अपने माथे पर चंदन की तिलक राई और तुलसीदास के माथे पर भी लगाए थे। इस तरह तुलसीदास ने भगवान श्रीराम को स्पष्ट रूप से देख सके। स्वयं तुलसीदास जी ने विनयपत्रिका में इन चमत्कारी घटनाओं का उल्लेख किया है।

अंतिम कुछ शब्द

ये था दोस्तों तुलसीदास जीवन परिचय के बारे में एक छोटी सी आर्टिकल आशा करता हूं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा ऐसे ही और कवि, महर्षि तथा प्रसिद्ध लोगों के जीवन परिचय के बारे में जानने के लिए हमारे दूसरे पोस्ट को भी जरूर पढ़ें और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले।

FAQ

Q. तुलसीदास के गुरु कौन थे.

तुलसीदास 7 साल की उम्र में अयोध्या में रहते हुए ही नरहरीदास से शिक्षा प्राप्त की. फिर 15 या 16 साल की उम्र में अयोध्या सेे वाराणसी गुरु शेष सनातन से संस्कृत व्याकरण, चार वेद, छह वेदांग, हिंदी साहित्य तथा दर्शन और ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान अर्जन किया था।

Q. तुलसीदास का जन्म कब हुआ?

तुलसीदास का जन्म आज से लगभग 500 साल पहले 1532 को उत्तर प्रदेश की बांदा जिले में हुआ था.

Q. तुलसीदास के पत्नी कौन थी?

तुलसीदास के पत्नी रत्नावली थी जिन्हें बुद्धिमती से भी बुलाए जाते हैं.

तुलसीदास के पुत्र का नाम क्या था

तुलसीदास के पुत्र का नाम तारक था. जो जन्म होने केेेेे 6 महीने के अंदर ही मर गया

तुलसीदास किसके अवतार थे?

बहुत से लोग कहते हैं कि वह महर्षि बाल्मीकि के अवतार थे

Categories: BIOGRAPHY

1 Comment

Bishes Sahu · October 23, 2022 at 7:21 PM

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