सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (1900-77) | Sumitranandan Pant ka jivan parichay

स्वागत है दोस्तों आज के इस लेख में हम हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि Sumitranandan Pant ka jivan parichay के बारे में पढ़ने जा रहे हैं। हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में योगदान अमूल्य रहा है। सुमित्रानंदन पंत ने अपनी लेखनी के माध्यम से हिंदी साहित्य के छायावाद युग को एक नई पहचान दिलाए हैं।
आज हम आपको छायावाद युग तथा हिंदी साहित्य के एक ऐसे कवि के बारे में बताने जा रहे हैं तथा उनके जीवन परिचय के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना कर पाना नामुमकिन है। तो चलिए दोस्तों ज्यादा समय गवाते नहीं शुरु करते हैं सुमित्रानंदन पंत जीवनी से जुड़ी यह आर्टिकल को ।
सुमित्रानन्दन पन्त की जीवनी (Sumitranandan Pant Biography In Hindi)
सुमित्रानंदन पंत का जीवनी
छायावादी युग के प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी (बागेश्वर, उत्तराखंड) नामक स्थान पर हुआ था। जन्म के कुछ घंटे पश्चात ही उनके मां का देहांत हो गया था। इसी वजह से जन्म से ही सुमित्रानंदन पंत का पालन पोषण उनके दादी ने ही की थी।
सुमित्रानंदन पंत अपने माता पिता की आठवीं संतान थे। उनके पिता का नाम गंगादत्त पंत था और माता का नाम सरस्वती देवी। सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति प्रेमी कहा जाता है यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि उनका जन्म खूबसूरत जगह कौसानी में हुआ था इसलिए उनके रचनाओं में ज्यादातर प्रकृति चित्र ( झरना, बर्फ, पुष्प, लता आदि चीजें) वर्णित होती है।
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम की बात की जाए तो उनका बचपन में गुसाई दत्त रखा गया था। लेकिन उन्हें अपने इतना पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने अपने नाम को बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।
सुमित्रानंदन पंत का शिक्षा
सुमित्रानंदन पंत 1910 में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जब अल्मोड़ा के गवर्नमेंट हाई स्कूल में गए तब वही उन्होंने अपना नाम गोसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था।
1918 में सुमित्रानंदन जी ने अपने मँझले भाई के साथ काशी गए और वहां के क्वींस कॉलेज में दाखिला लिए और वहां पढ़ने लगे। हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने मयोर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए।
यह साल थी 1921 जब भारत में महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था। महात्मा गांधी जी ने इस आंदोलन में महाविद्यालय, विद्यालय, न्यायालय एवं अन्य सरकारी अनुष्ठानों का आविष्कार करने का आव्हान दिया था इसी वजह से सुमित्रा नंद ने महाविद्यालय छोड़ के घर पर ही संस्कृत, हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी जैसी भाषा साहित्य का अध्ययन किया था।
सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन में आर्थिक संकट
कुछ वर्षों के बाद सुमित्रानंदन पंत जी के पिता गंगाधर का देहांत हो गया था। कर्ज से जीते हुए पिताजी का देहांत हो गया उसी कर्ज को चुकाने के लिए उन्होंने अपने घर, जमीन को भी बेचना पड़ा था। ऐसी परिस्थिति की वजह से वह मार्क्सवाद की ओर मुख किए।
मृत्यु
सुमित्रानंदन पंत जी का निधन 27 दिसंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ( प्रयागराज) शहर में हो गया।
सुमित्रानंदन संक्षिप्त जीवन परिचय
नाम | सुमित्रानंदन पंत |
मूल नाम | गुसाई दत्त |
जन्म | 20 मई, सन 1900 |
जन्म स्थान | कौसानी, अल्मोड़ा |
मृत्यु तिथि | 28 दिसंबर 1977 |
आयु ( मृत्यु तक) | 77 वर्ष |
मृत्यु स्थान | इलाहाबाद उत्तर प्रदेश भारत |
पिता का नाम | गंगादत्त पंत |
माता का नाम | सरस्वती देवी |
पेशा | कवि लेखक |
शिक्षा | हिंदी साहित्य |
भाषा | शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली |
रचनाएं | वीणा, लोकायतन, ग्रन्थि, युगपथ, उत्तरा, गुंजन, युगान्त, ग्राम्या, अनिता, चिदम्बरा, युगवाणी, स्वर्ण किरण, धूल |
पुरस्कार | 1961 में पद्म भूषण, 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार |
सुमित्रानंदन पंत के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण वर्ष
• 1916 में ही उन्होंने ‘गिरजे का घंटा’ नामक एक रचना लिखी।
• 1918 सिया में सुमित्रानंदन जी ने अपने भाई के साथ काफी आ गए और वहां के क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। मैट्रिक पास करने के बाद वह अपने 12वीं पढ़ाई के लिए इलाहाबाद म्योर कॉलेज चले गए।
• 1919 में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर असहयोग आंदोलन को सहयोग करने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी।
• 1931 में कुंवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर प्रतापगढ़ चले गए और अनेक वर्षों तक वही रहे।
• 1938 में सुमित्रानंदन पंत जी ने रूपाभ नामक पत्रिका का संपादन किया। फिर बहुत श्री अरविंद आश्रम की यात्रा की और वहां उन्होंने अपने चेतना का विकास किया और आजीवन अविवाहित रहने का फैसला लिया।
• 1950 से 1957 तक वह आकाशवाणी का परामर्शदाता रहे।
• 1958 में उन्होंने वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चितांबरा प्रकाशित हुआ जिसके वजह से उन्हें उसी साल भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
• 1960 में “कला और बूढ़ा चांद” काव्य संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
• 1961 में उन्हें पद्मभूषण उपाधि मिली।
• 1964 में उनका विशाल महाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ।
• 1977 दिसंबर 28 तारीख को उनका निधन हुआ ।
सुमित्रानंदन पंत का प्रमुख रचनाएं
कविता संग्रह / खंडकाव्य
- उच्छवास
- पल्लव
- वीणा
- ग्रंथि
- गुंजन
- ग्राम्या
- युगांत
- युगांतर
- स्वर्णकिरण
- स्वर्णधूलि
- कला और बूढ़ा चांद
- लोकायतन
- सत्यकाम
- मुक्ति यज्ञ
- तारा पथ
- मानसी
- युगवाणी
- उत्तरा
- रजतशिखर
- शिल्पी
- सौंदण
- अंतिमा
- पतझड़
- अवगुंठित
- मेघनाथ वध
- ज्योत्सना
सुमित्रानंदन पंत को मिली पुरस्कार और उपाधि
- भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1958) वाणी काव्य संग्रह के लिए
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960) कला और बूढ़ा चांद काव्य संग्रह के लिए।
- 1961 में पद्म भूषण
- 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक परिचय
सुमित्रानंदन का बचपन से ही साहित्य के ऊपर रुचि रहा है। उन्होंने महज 7 साल की उम्र में ही कविताएं लिखना शुरू कर दी थी। साल 1916 उन्होंने गिरजे का घंटा’ नामक सर्वप्रथम रचना लिखी थी।
जब सुमित्रानंदन पंत अपने कॉलेज की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद गए तब उनकी साहित्य के ऊपर और भी रुचि बढ़ने लगी। 1920 में उन्होंने और दो उच्छवास’ और ‘ग्रंथि’ रचनाएं की जो उसी साल प्रकाशित हुआ।
सन 1927 में उनके वीणा और पल्लव दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। कला और बूढ़ा चांद के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और चिदंबरा रचना के कारण उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
भाषा शैली
सुमित्रानंदन जी ने अपने कृतियों की भाषा शैली अत्यंत सरल एवं मधुर है। वह अंग्रेजी और बंगला भाषा से काफी प्रभावित थे इसलिए उनकी रचनाओं में गीतात्मक शैली दिखाई देती है। उनके शैली की प्रमुख विशेषता की बात की जाए तो उनके शैली में मधुरता, सरलता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता दिखाई देती है।
साहित्य में स्थान
सुमित्रानंदन प्रकृति प्रेमी थे। वह सदैव सौंदर्य के उपासक थे। उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत प्रकृति चित्रण से ही की थी। उनकी रचनाओं में प्रकृति एवं मानवीय भावों की चित्रण कोमलता के साथ दिखाई देती है।
इसी वजह इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कवि कहा जाता है। छायावादी युग के साहित्य इतिहास में उनका योगदान अतुलनीय है।
FAQ
सुमित्रानंदन पंत जी का मूल नाम क्या था
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाई दत्त था। लेकिन उन्हें अपने इतना पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने अपने नाम को बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को कौसानी, अल्मोड़ा में हुआ था।
सुमित्रानंदन पंत का पिता का नाम क्या था
पंडित गंगा दत्त पंत
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