मुंशी प्रेमचंद का संपूर्ण जीवन परिचय – Munshi Prem Chand Biography in Hindi

दोस्तों मुंशी प्रेमचन्द का नाम सुनते ही हमें हिन्दी भाषा के विचार प्रकट होते है जिस प्रकार इन्होंने अपने जीवन काल में हिन्दी भाषा को उल्लेखित किया है जिसके कारण लोगों की हिन्दी भाषा की तरफ रूची समझ को बढ़ा दिया है ।
मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन में कठिनाइयों को सहझते हुए समय के साथ चलना सीखा है इनकी यहीं सोच इनको प्रतिभाशाली व्यक्ति का स्वरूप देती है, दोस्तों मुंशी प्रेमचन्द्र का हमारे समाज में गहरा प्रभाव रहा है क्योंकी इन्होंने अपनी कलम के बल पर सामाजिक बुराईयों को खत्म किया है।
वे हिन्दी और उर्दू दोनों के प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कहानीकारक थे आपको इनके बारे में एक रोचक बात बताते है की 1934 में आई ‘मजदूर‘ फिल्म इनके द्वारा लिखी गई है। इस आर्टिकल में मुंशी प्रेमचन्द के जीवनी को ओर बेहतरीन तरीके से जानेगे की इनके उपन्यास व कहानिया कौन – कौन सी है और इनका जीवन काल किस प्रकार रहा तो आर्टिकल को पुरा पढ़े।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय संक्षिप्त में -Premchand Ka jivan parichay
नाम | मुंशी प्रेमचंद जी |
अन्य नाम | धनपतराय श्रीवास्तव |
जन्म | 31 जुलाई सन 1880 |
जन्म स्थान | लमही, बनारस, उत्तर प्रदेश (भारत) |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
व्यवसाय | अध्यापक, लेखक, पत्रकार |
निधन | 8 अक्टूबर 1936 |
मुंशी प्रेमचन्द जी का जीवन – Munshi Prem Chand Biography in Hindi
मुंशी प्रेमचन्द अपने दूसरे नाम ‘धनपतराय श्रीवास्तव‘ के नाम से भी जाने जाते है। इनका जन्म 31 July 1880 में बनारस के एक छोटे से गांव लमही में हुआ। मुंशी प्रेमचन्द साधारण परिवार से थे इनके पिताजी का नाम ‘अजायब राय‘ था जो मास्टर थे।
मुंशी प्रेमचन्द के माताजी का नाम आनंदी देवी था। जब प्रेमचन्द जी सात वर्ष के थे तब इनकी माता का देहान्त हो गया मुंशी प्रेमचन्द्र का बचपन बड़े ही सर्घषो से गुजरा है उसके बाद प्रेमचन्द जी के पिता ने दुसरा विवाह कर लिया अब इनकी सौतेली माँ से भी प्यार नहीं मिला क्योंकि उसने पूर्ण रूप से अपनाया नहीं प्रेमचंद जी को
बचपन से ही प्रेमचंद को पढ़ने की तो रूची तो थी जिसके चलते इन्होंने कहानी और उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया यह अपने सरल और सहज स्वभाव के साथ जीवन में अपने बलबूते कुछ बनना चाहते थे तो इन्होंने एक वकील के पास 5 रूपये मासिक वेतन पर कार्य करना शुरू किया धीरे-धीरे हिन्दी विषय में और ज्यादा पकड़ बनाने लगे बाद में इनको प्रधानाचार्य के रूप में नौकरी मिली इस प्रकार यह अपने जीवन में कठिनाईयों से लड़ते हुए 8 अक्टूबर 1936 को देहांत हो गया।
मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा ?
मुंशी प्रेमचन्द पढने लिखने के तो शुरुआत से ही शौकीन थे इन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा लमही गांव से ही प्राप्त की इन्होने अपने जीवन को अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया ग्रेजुएशन की पढाई के लिए बनारस के कालेज में एडमिशन लिया जहाँ इन्होने हिन्दी के साथ उर्दू, फारसी व थोड़ा अग्रेजी भाषा को अच्छी तरह समझा व सीखा इस प्रकार इन्होंने सन् 1919 में B.A. की डिग्री को प्राप्त किया।
मुंशी प्रेमचंद का विवाह
दोस्तों प्रेमचन्द जी बचपन से आ रही तकलीफों का बोझ उठा रहे थे ओर लगातार अपने जीवन को उज्जवल बनाने की राह पर चल रहे थे जब उनकी उम्र 15 वर्ष हुई तो पुराणिक रीती- रिवाजों के अनुसार उनके पिताजी ने उनका विवाह कर दिया। हालाकि उस समय प्रेमचन्द जी विवाह नही करना चाहते थे।
विवाह के बाद इनकी पत्नी के साथ इनका स्वभाव बिगड़ता चला गया क्योकी इनकी पत्नी एक झगडालू व गुस्से भरी महिला थी वह अपनी किस्समत से तो पहले ही लड़ रहे थे बचपन से ही मां का शाया चला गया और इसके बाद अब इनके पिताजी का भी देहान्त हो गया ।
अब मुंशी प्रेमचन्द जी के कन्धों पर बोस ओर बढ़ गया अब इन्हें अपना परिवार भी चलाना था और आर्थिक रूप से इनकी स्थिती ओर भी दयनीय हो गई एक समय ऐसा भी आया जब घर की बहुमूल्य वस्तुओं को बेच कर घर चलाना पड़ा इसके बाद प्रेमचन्द जी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया।
काफी समय गुजर जाने के बाद जब वह 25 वर्ष के हुए तो एक विधवा स्त्री से विवाह किया यह विवाह प्रेमचन्द जी ने अपनी इच्छानुसार किया जो उनकी जिंदगी में खुशयाली लेकर आया और वह तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़े तथा कभी पीछे मुड़कर नही देखा।
प्रेमचन्द जी के उपन्यास ?
मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास व्यक्ति के नैतिक मूल्यों व गुणों को बढ़ाते है यह अपने उपन्यास को सरल सहज भाषा में प्रस्तुत करते है इनके उपन्यास व कहानियों को सुनकर शरीर में नई उर्जा का विकास सा होता है, इनकी कहानियों को पढ़ना शुरु कर दे तो छोड़ना मुश्किल हो जाता है शायद इसी अदभुत कुशलता के कारण इन्हें उपन्यास का सम्राट कहा जाता है मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखे गये निम्न उपन्यास-
- गबन
- गोदान
- प्रेम
- कायाकल्प
- रूठी रानी
- देवस्थान रहस्य
- वरद्वान
- सेवासदन
- कर्मभूमि
- प्रतिज्ञा
- प्रेम आश्रम
- कृष्ण
- रंगभूमि
(i) नाटक– मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा नाटकों पर भी कार्य किया गया, परंतु उपन्यास व काहानियाँ की स्थिति में नाटकों में इनको सफलता नही मिली मुंशी प्रेमचन्द जी के प्रमुख नाटक कर्बला, प्रेम की वेदी, संग्राम आदी है।
(ii) कहानी– मुंशी प्रेमचन्द्र ने कहानियों में बहुत अच्छी तरह से कार्य किया है जिसमें इनको सफलता भी काकी मिली है प्रेमचन्द जी द्वारा कुल 300 कहानियां लिखी गयी है जो हिन्दी व उर्दू दोनों भाषा में है इनकी प्रमुख कहानिया सोजे वतन, दो बैलो की कथा, पूस की रात, पंच परमेश्वर, धिक्कार, एक आच की कसर, नैराश्य लीला, उदार बफा का खंजर, माता का हद्वय, वासना की कड़ियां, कौशल, स्त्री और पुरुष, निर्वासन, इदगाह, अंधेर, अनुभव, आप-बीती आदी है।
मुंशी प्रेमचन्द की प्रमुख रचनाओं के नाम
मुंशी प्रेमचन्द्र ने अपनी सभी रचनाओं को बहुत ही अच्छे तरीके से सम्बोधित किया है इनकी रचना विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत हुई है इनकी प्रमुख रचनाएँ श्रृग, ययाति, उदयन, बाणभट्ट, धनपाल कादम्बरी निम्न है।
मुंशी प्रेमचंद की कार्यशैली ?
मुंशी प्रेमचन्द्र बचपन से ही कठिन परिश्रमी तो थे ही जिसके कारण वह अतिम क्षण तक कुछ न कुछ करते रहे यह अपने दृढ व कठोर परिश्रम के कारण अपने जीवन को लगातार सवारते गये।
मुंशी प्रेमचंद ने कानपुर मे भी कार्य किया जहाँ उन्होंने अपने कविता और लेख को पत्रिका संपादक से प्रकाशित करवाया और इस प्रकार लगातार कार्य करते रहे जिससे लोगों को उनकी कविताए एवं लेख पसंद आने लगे जिसके कारण इनका उच्च स्तर पर गौरखपुर में ट्रांसफर हो गया बाद में उन्होंने महात्मागांधी आंदोलन मैं भी अपनी भागीदारी रखी और कुछ उपन्यास हिन्दू और उर्दू में भी प्रकाशित किये।
मुंशी प्रेमचन्द अपनी जिंदगी के इस बढ़ते कदम पर रूकना नही चाहते थे वे और आगे बढ़ना चाहते थे उन्होंने अपने लेखन रुची में नया बदलाव लाने केलिए फिल्म जगत मुम्बई में चले आए जहाँ कुछ फिल्मों की स्क्रीप्ट भी लिखी परन्तु इस फिल्म जगत में मुंशी प्रेमचन्द जी की किस्मत ने साथ नही दिया क्योकी वह फिल्म पुरी बन नहीं पाई जिसके कारण उनको नुकसान भी हुआ और अंत में उन्होंने मुम्बई को छोड़ दिया
मुंबई छोड़ने के बाद मुंशी प्रेमचन्द्र वापस बनारस आकर कहानियाँ व उपन्यास लिखना शुरू किया इस प्रकार प्रत्येक कठोर क्षण में अपने जीवन में अंतिम सांस तक लगातार प्रयास करते रहे।
मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन ?
मुंशी प्रेमचन्द दुसरो के स्वभाव को समझने वाले तार्किक व्यक्ति थे जो हमेशा दलित, दमित, स्त्री, किसान व समाज के लिए हमेशा न्याय चेतना का विचार करते थे वह व्यक्तिगत जीवनी बातों को लेकर पूर्ण रूप से परिचित थे जिसमें इनके निम्न अनमोल वचन है-
✓आत्मसम्मान की रक्षा करना हमारा सबसे पहला धर्म है।
✓सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ही जिंदगी है।
✓अन्याय होने पर चुप रहना अन्याय करने के ही सम्मान है।
✓जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
✓क्रौध मौन सहन नही कर सकता है मौन के आगे क्रौध की शक्ति असफल हो जाती है।
✓धन खोकर अगर हम अपनी आत्या को पा सके तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।
✓गलती करना उतना गलत नहीं जितना उसे दोहराना है।
मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय वीडियो में जाने
कुछ अंतिम शब्द
मुंशी प्रेमचंद जीवन में काफी कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़े। उन्होंने हिंदी साहित्य में कई ऐसे योगदान दिए जिसे भुला पाना संभव नहीं है। उन्होंने कहानी उपन्यास लिखने के साथ-साथ फिल्म के स्क्रिप्ट में लिखे थे। उनके लेकिन आज भी पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है ।
तो दोस्तों यह थी मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय के बारे में एक छोटी सी आर्टिकल, आशा करता हूं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। ऐसे ही महान व्यक्तित्व की जीवन के बारे में जानने के लिए हमारे दूसरे पोस्ट को भी जरूर विजिट करें और अपने दोस्तों परिवार जनों के साथ शेयर करना ना भूले।
FAQ
Q. मुंशी का अर्थ क्या है ?
एक हिंदू सचिव या क्लर्क।
Q. मुंशी प्रेमचन्द्र की सबसे अच्छी कहानी कौन सी है?
‘दौ बैलों की कथा’ हीरा और मोती की कहानी
Q. प्रेमचंद की मृत्यु कैसे हुई ?
लखनऊ में कई दिन बिमार रहने के बाद 8 अक्टूबर 1936 को निधन हो गया।
Q. प्रेमचन्द की कमजोरी क्या है?
नेम-धरम का पक्का होना।
Q. प्रेमचन्द का क्या कहा जाता है?
उपन्यास सम्राट ।
Q. थाने में मुंशी को क्या कहते है?
हेड मोहर्रिर।
Q. मुंशी प्रेमचन्द का धर्म क्या था?
हिंदू
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