Kalaabati- एक लड़की की दुखद कहानी { सत्य है }

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 कलावती 

 सन 1997, बरगढ़ जिले में हरिहरपुर प्रगना मध्ये एक माफसल गांव है, नाम है रणपुर। ग्राम मुंडा मंडी एक घर, घर के आगे पीछे 5कमरा, आगे सामने का दरवाजा, पीछे बाड़ी का दरवाजा । घर के पीछे  कुआं । आंगन में तुलसी चौरा, बरामदा में एक खटीया है। 


Somanatha Babu  गांव में खेती-बाड़ी करके अपनी परिवार की देखरेख करते हैं । खेतीवाड़ी आदि से दो पैसे हाथ को आता है उससे संसार एक रकम चल जाता है यानी कि अच्छा चलता है। यह नहीं हुआ, वह नहीं हुआ इस तरह के शब्द घर  की किसी भी सदस्य के जुबान से सुनाई नहीं देती। घर के पीछे  में आम का पेड़ एक, सहजना दो पेड़    ।


सोमनाथ खूब सीधा सरल व्यक्ति, लोग मानते हैं प्रशंसा करते हैं। उनके घर मैं खाने  के लिए कुटुम 5 प्राणी, खुद 2 लोग, मां बूढ़ी, 8 साल का बेटा और 19 साल की लड़की। लड़की की नाम कलावती ।

शाम के समय, नील आकाश में पक्षियों का झुंड दूर उड़ जा रहे थे बादल के अंदर । उस समय कला खाना बना रही थी। चूल्हा  पानी में चावल डाल कर धीरे सांस लि। धीमी धीमी पैरों से रसोईघर से बाहर आकर बरामदा मैं बैठ गई, मन में कुछ सवाल आते हैं । कमल नयन, कोमल मन में तुलसी कुंड को देखकर मन में सोचती है की  -भगवान मेरे कुछ सवाल का जवाब दो इस दुनिया में केवल मैं ही ऐसा हू, मुझे लेकर बाबा के अंदर की चिंता को कब दूर करोगे भगवान, मेरे लिए मेरी मां हर दिन डांट  सुनती है। मां की बातों से मैं सुंदर हो सकता हूं  लेकिन आई मां की आंखों से नहीं क्यों? एक बार कह दो काला तन लेकर पैदा होना यदि बाप तो मुझे ले जाओ भगवान। भावना में बहता चला जा रहा था समय, ठीक इस समय बूढ़ी आई की डाक –” रे कालामुखी सर्वनाशी कहां चली गई रे अंधी”।

आई मां की इस तरह बुलाना कलावती मन को हिला दिया। उठ कर हड़बड़ाहट से दौआई रसोईघर आईमां के पास । बूढ़ी के आंखों में प्रचंड गुस्सा, हर समय कला के ऊपर रहती है गुस्सा। तिरछी नजर से देखती है कला, बूढ़ी की आंख लाल, धीरे आवाज में कला-” क्या हुआ आई” बूढ़ी आई “क्या हुआ तो बुद्धि भ्रष्ट हो गया, दिखाई नहीं देता तुझे इतनी बड़ी हो गई है ..सर में कुछ नहीं, लेकिन आंखें तो है ..देख तेरी अंधी आंखों से चूल्ह को देख” ।चूल्हे में आग नहीं है  पतीला से उछला पानी से आग बुझ गया था, निकल रहा है केवल दो जोडे लकड़ी से सीं सीं धुआ । आई- आंखों से दिखाई दिया तुझे, जैसा काम वैसा मुंह। ए डांट सुन के  वीणा देवी भी आई.. बूढ़ीआई किसी को छोड़ता नहीं मां जैसी बेटी वैसी दोनों को बहुत सुनाया।


बूढ़ी बीमार है 2 साल हो गया पैर मे दर्द हे। हर समय एक बांस का लकड़ी की सहारे से चलती है। कलावती भी खूब धैर्यशील, बूढ़ी की बात को कभी काटता नहीं। बूढ़ी की सेवा करने में कभी पीछे नहीं हटती। बूढ़ी की डांट सुनकर  भी बूढ़ी  की सेवा करती है। 2 साल हो गया बूढ़ी की सेवा में कोई लापरवाही नहीं की है फिर भी बूढ़ी से डांट खाती है। बूढ़ी के पैर दर्द, सोमनाथ बाबू अपनी  ससुर घर से एक लाल पैर मालिश वाला तेल लेकर दिए है, वह तेल कला रोज शाम के समय  पैर में लगाकर मालिश कर देती है । बूढ़ी को आराम मिलता है। बरामदा में पढ़ा हुआ खटीआ बूढ़ी की आसन। रात हो गई।


रात के खाने में भात के साथ है आलू झोल भजा कुंदूरु। खा के सब लोग बैठे हुए हैं , सो गया है बूढ़ी के नाती सीमू ।


सोमनाथ-“पता है वीणा.. आज मैं रंगीना पुर रास्ते से आ रहा था वहां पर मेरा बंधु साधु चरण उसके साथ भेंट हुआ .. वह हमारी कला के बारे में पूछ रहे थे, पता है क्यों?  उनका एक बेटा है  वह उनके बेटे के साथ हमारे काला की रिश्ते के बारे में कह रहे थे।”

वीणा देवी– आपने क्या कहा”

सोमनाथ– “मैं क्या कहते.. हां भर दिया, कल आएंगे, कल में शीघ्र जाकर बाजार से कुछ ले आऊंगा,  इस बार जरूर रिश्ता ठीक हो जाएगा मेरा पूरा विश्वास”

बूढ़ी बिचक के बोली -“लेकिन मुझे विश्वास नहीं.. तू केबल बाजार जाते रहना, और हमेशा मेहमान को खिलाते रहना.. ऐसा 3 बार हो चुका है और कितने बार… मेरा भरोसा नहीं है.. तू भी छोड़ दे”

सोमनाथ– मेरा मन कह रहा है इस बार जरूर ठीक हो जाएगा तू देखना मां “
बूढ़ीआई- “हां देखेंगे इस काला मुखी की हाथ कौन थाम ता है”

सुबह-सुबह सोमनाथ बाबू बाजार चले गए  आज कलावती को देखने के लिए लोग आएंगे । शुभ संकेत के लिए बिणा देवी कलावती को जल्दी नहा धोकर तुलसी के मुल मे एक दीप प्रज्वलित करने के लिए कही है। कलावती मां के अनुसार सारी काम की है। आज सब लोग खुश है केवल बूढ़ीआई को छोड़कर उनके अनुसार मेहमान आएंगे खा कर चले जाएंगे इसमें कोई लाभ नहीं केबल बजार खर्चा। 

कुछ समय बाद सोमनाथ घर को लौट आए । हाथ में एक झूला साग-सब्जी है और एक मीठे का डिब्बा। आज सोमनाथ बाबू के चेहरे में एक आनंद की झलक , वहू दृढ़ निश्चय मैं है की आज कला की रिश्ता बिल्कुल ठीक हो जाएगा। 

कुछ समय के बाद रंगीनापुर से लोग आए। ऐसे 5 लोग आए थे। 
सोमनाथ अच्छे से अतिथियों का स्वागत किया, पैर धोने के लिए एक एक लोटा पानी दिया, सबको घर के अंदर ले गए। अंदर बैठने के लिए दो खटीआ है। 5 लोग बैठे हुए हैं सोमनाथ बाबू खड़े थे। 


कलावती को देखने आया लड़का देखने में काला मिची मिची, मोटा मोटा हाथ पैर, आंखे दो बड़ा बड़ा ,तीन लोगे के बीच में बैठा है साधु चरण के पुत्र देखने में पूरा हाथी जैसा गैंडा- लकड़बग्घा । कुछ देर तक सोमनाथ अतिथियों के साथ बातचीत किए फिर वह लोग लड़की को देखने के लिए बोले।


कला को आज वीणा देवी एक सुंदर संबलपुरी साड़ी पहना दी थी । सभी लोगों का आस लड़की देख ना। वीणा देवी कला को ले आई, मां कहे अनुसार कला सभी को मुंडिया मारी। कुछ समय बीत गया लड़की देखना, खाना पीना सारे काम खत्म्म्म होगया हो हो गया  । इस तरह अच्छे से कार्य समाप्त हुआ। 

आए अतिथि कुछ समय विश्राम कीए फिर चले गए। कलावती की कागज ले गए हैं, लड़का लड़की की कुंडली देख के दो-तीन दिन के अंदर खबर देंगे यह बोलकर गए हैं साधु चरण। 

सोमनाथ दृढ निश्चित, साधु चरण उनको निराश नहीं करेंगे। 3 दिन बाद साधु चरण की खबर आई । इस खबर सोमनाथ बाबू की चेहरे की खुशी को छुड़ा ले गया। वह कलावती की विवाह को लेकर फिर से निराश पाए ।
यह खबर बूढ़ी के काने में-” मैं तो कहता था.. सब व्यर्थ है ..ए कालामुखी की विवाह कभी नहीं होगी.. इसके चेहरे में ही दोष है।”

सोमनाथ:- “मां ऐसी बात क्यों कह रही है तु, दो लोगों का जातक मेल नहीं हुआ होगा , इसमें मेरी बेटी की क्या दोष”

बूढ़ी आई:-“ हॅअं…. तुझे तो सिर्फ जातक दिखाई देता है ..तेरी बेटी की मुंह नहीं ।” अलक्षिणी

शाम के समय, कलावती उस तरह बरामदा मैं बैठकर खामोशी से, दुखियारी मन की नयन से तुलसी चौरा को देखकर सोचती जा रही है अनेक कथा। “दुनिया में मेरे जैसी कितने लड़की होंगे ,लेकिन उन लोगों के परिवार में ऐसी आई मां नहीं होगी। एक लड़की काली हो या  अलक्ष्मी लेकिन यह बात बाहर लोग के अपेक्षा घर के लोगों की जुबान से सुनना सच में मन को बहुत आघात पहुंचाता है … भगवान। काला शरीर लेकर पैदा होना अभिशाप लगता है.. मैं ऐसी हूं इसलिए कह नहीं रही हूं भगवान.. मुझे लेकर.. मेरी चेहरे को देखकर..मेरी वाहाघर  को लेकर मेरी मां बाबा के ऊपर जो चिंता.. वह चिंता पापा को जीने नहीं देगा.. उस चिंता से उनसे मुक्त करो प्रभु..” टिप टिप आंखों से आंसू नीचे गिरने लगा । 

इस समय मां पास आए बोले “तू मेरी सोना बेटी” । बरामदा  मैं बैठी है बूढ़ी “हां.. आजकल सोने का मूल क्या है.. सब लोग तो कोयला के पीछे भाग रहे हैं, इसीलिए तो तेरी सोने जेसी बेटी घर में पड़ी है।” वो रात ,उदासी मन से भरी सारी रात कट गई ।

सुवह हुआ , सुबह-सुबह मटकी लेकर  पानी लेने के लिए कलावती कुआं के पास गई । पानी निकालने लगी , मटकी में भरने लगी । कुआं बहुत गहरा और चौड़ाई कम था,  जैसे ही कूआं मे तीसरी बार बाल्टी डाली कुए की सतह पर बहुत फिसलन था, कलावती की पैर फिसल गया, कुएं के अंदर गिर पड़ी। यह दुर्घटना उसकी जान ले गई। कलावती की मूर्त से वावा खूब रोए , वह अपनी बेटी को एक पल भी ना देखें रह नहीं पाते थे ,आज वह नहीं है । बेटी की मौत एक बाप के मन को बहुत आघात पहुंचाती है ।

सोमनाथ की एक ही इच्छा बेटी के अस्थि लेकर वह डुमेरपाली गांव जाएंगे   । जीरा नदी में अस्थि विसर्जन करेंगे। डुमेरपाली सोमनाथ बाबू की ससुर घर।

आज अस्थि लेकर सोमनाथ बीवी और बेटा को लेकर डूमरपाली चला गए हैं । परसो शाम को लौटेंगे । घर की सारी जिम्मेदारी बूढ़ी की हाथ में।

आज की रात बड़ी की पैर में बहुत दर्द, चलना भी बहुत कष्ट। बूढ़ी अकेला दर्द से सो नहीं पा रही है , दर्द से करह रही है । बंद आवाज में पुकारा” कालामुखी  जल्दी  आजा” फिर बूढ़ी की याद आई कला ही उसका सब कुछ था , हर रोज सही समय में दवाई ,हाथ पैर मालिश कर देताा था.. लेकिन आज वह नहीं  है । बूढ़ी की आंखों से आंसू  निकल आई, कलावती की अहमियत समझ गई  ।

शायद आपको यह कहानी अच्छी नहीं लगी होगी, लेकिन यह कहानी इस सत्य है- हमारे गांव की एक छोटी सी कहानी आपको इसलिए तुम माध्यम से प्रस्तुत करने की जस्ता रही थी.

Categories: Stories

Rupe

मुझे लिखना बहुत पसंद है। मैं ज्यादातर कहानियां लिखती हूं। इस ब्लॉग के जरिए अपनी लिखी कहानियां लोगों के साथ शेयर करना चाहती हूं।

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