राजा राम मोहन राय जीवन परिचय | About Raja Rammohan Roy

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स्वागत है दोस्तों, आज हम आपको ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे दुनिया एक महान समाज सुधारक के रूप में पहचानती है। जी हां दोस्तों हम बात करने वाले हैं राजा राम मोहन रॉय के बारे में, कैसे उन्होंने एक महान समाज सुधारक के रूप में परिचित हुए, उनके पीछे की कहानी को इस लेख में जाने वाले हैं।

भारत की राजनीतिक दर्शन में राजा राम मोहन रॉय एक समाज सुधारक के रूप में परिचित है और भारत के नवजागरण जनक के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा वह ब्रह्म समाज के प्रतिष्ठा ता के रूप में प्रसिद्धि लाभ किए हैं।

राजा राम मोहन रॉय मध्य भारत की उदारवाद का प्रवक्ता थे। उन्होंने पारम्परिक हिन्दू परम्पराओं को तोड़ते हुए महिलाओं के लिए और समाज के हितों में कई सामाजिक कार्य किए है। महिलाओं के स्वतंत्रता एवं एक श्रेणी विहीन समाज प्रतिष्ठा करने के ऊपर गुरुत्व दिए थे।

भारत के समाज के हित में राजा राम मोहन रॉय ने बहुत सारे कार्य किए हैं। उनमें से एक है, भारत में प्रचलित सतीदाह प्रथा विरोध , इसके लिए वह बहुत सारे लोगो के मन में हमेशा स्मरणीय रहेंगे। इसके अतिरिक्त भी ऐसे बहुत सारे कार्य है जिसके कारण राजा राम मोहन रॉय को लोग सम्मान के नजर से देखते हैं।

राजा राम मोहन राय जीवनी – Information About Raja Rammohan Roy in Hindi

बिंदुजानकारी
नामराजा राम मोहन राय
जन्म तिथि 22 मई 1772
जन्म स्थान हुगुली गांव (बंगाल)
पिता का नाम रमाकांत राय
माता का नाम तारिणी देवी
पत्नी का नामदेवी उमा
बच्चे के नाम ज्ञात नही
पेशाभारतीय इतिहासकार
मृत्यु27 सितंबर 1833
मृत्यु स्थानस्टेपलटन, ब्रिस्टल, UK
आयु70 साल
जातीब्राह्मण

राजा राम मोहन राय जीवन परिचय – Raja Rammohan Biography in Hindi

राजा राम मोहन रॉय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल की हूगुली गांव में हुए थे। वह एक ब्राह्मण परिवार में जन्म ग्रहण किए थे। उनके पिता रमाकांत रॉय वैष्णव थे और माता तारिनी देवी जो शिव भक्त थे। उनका परिवार वैष्णव था।

वैवाहिक जीवन

उस समय में समाज में प्रचलित बाल विवाह के अनुसार उनकी शादी 9 साल की उम्र में ही हो गई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश: उनकी प्रथम पत्नी की जल्द ही देहांत हो गया। इसके बाद 10 साल की उम्र में वह दूसरी शादी किए थे, जिनसे उनके दो बच्चे हुए। लेकिन 1826 में उस पत्नी का भी देहांत हो गया। इसके बाद बहुत तीसरी शादी की लेकिन उनके वह पत्नी भी ज्यादा समय जीवित नहीं रह सकी।

राजा राम मोहन रॉय के शिक्षा जीवन

राजा राम मोहन रॉय अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव की स्कूल से ही की थी वह बंगाली और संस्कृत भाषा में शिक्षा प्राप्त की इसके बाद बंगाली भाषा समिति अरबी भाषा का भी अध्ययन किया। इसके व्यतीत पर्शियन भाषा में भी उनकी रुचि दिखाई दी, और इसके साथ 22 साल की उम्र में इंग्लिश भाषा सीखे।

संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत काशी तक भी गए थे । जहां वह वेदों और उपनिषद का ज्ञान प्राप्त की थी। इसके व्यतीत राम मोहन ने कुरान, इस्लामी धर्मशास्त्र एवं अरबी अनुवाद विषय में ज्ञान प्राप्त की थी।

राम मोहन रॉय अपने जीवन में वेद, उपनिषद और भागवत गीता के साथ-साथ हिंदू , मुसलमान और क्रिश्चियन धर्म ग्रंथ के भी अध्ययन किए थे। विभिन्न धर्म शास्त्र का अध्ययन करने के बाद वह हिंदू धर्म में प्रचलित कुसंस्कार के बारे में अवगत हुए एवं उसे दूर करने के लिए हिंदू धर्म में सुधार लाने के लिए संकल्प वध हुए।

साला 1803 में उनके पिता का निधन हो गया, फिर वह मुर्शिदाबाद चले गए। साला 1809 में वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन में एक Sheristader के रूप में नियुक्त हुए थे। लेकिन कुछ कारणों की वजह से 1814 इस पदवी से वह इस्तीफा दिए थे।

साल 1815 में राम मोहन कलकत्ता चले आए थे। वहां पर उसी साल वह एक “आत्मीय सभा” के नाम से आध्यात्मिक समाज प्रतिष्ठा किए थे। इसके बाद 1816-17 में कोलकाता में एक अंग्रेजी विद्यालय प्रतिष्ठा किए थे।

1818 मे राम मोहन रॉय सतीदहा प्रथा के विरुद्ध मे दृढ़ प्रतिवाद किए थे। इस प्रथा के अनुसार विधवा नारी को अपने मृत स्वामी के चिता में प्राण विसर्जित करने के लिए बाध्य किया जाता था। राजा राम मोहन रॉय के उद्यम से ही यही प्रथा को हटा दिया गया । भारत की इतिहास में यह एक गुरुत्व पूर्व तथा स्मरणीय घटना होकर रहेगा।

तत्कालीन मुगल सम्राट के राष्ट्र दूत के रूप में राम मोहन इंग्लैंड जाकर वहां के राजा चतुर्थ जॉर्ज को मिले थे और उनके सामने कुछ दावी उप स्थापन किए थे। इसके लिए उन्हें ‘राजा‘ उपाधि में सम्मानित किया गया था।

राम मोहन इंग्लैंड के ब्रिटिश दार्शनिक तथा उपयोगितावाद के प्रवक्ता जेरेमी बेंथम और लॉर्ड हयूम के चिंता धारा से विशेष रूप से प्रभावित हुए थे। इसके व्यतीत इंग्लैंड के तत्कालीन राजनीतिक दर्शन द्वारा भी वह प्रभावित हुए थे ।

राजा राम मोहन रॉय की मृत्यु – Raja Rammohan Roy Death

राजा राम मोहन रॉय अपनी पेंशन के लिए मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत के रूप में 1830 को UK गए थे। 27 सितम्बर 1833 को ब्रिस्टल के पास स्टाप्लेटोन में मेनिंजाईटिस के कारण उनका देहांत हो गया.

राजा राममोहन राय के द्वारा प्रतिष्ठित अनुष्ठान – आत्मीय सभा एवं ब्रह्म समाज

भारतीय समाज से सामाजिक कुसंस्कार और धार्मिक अंधविश्वास को दूर करने के लिए राजा राम मोहन रॉय ने दो अनुष्ठान प्रतिष्ठा किए थे।

आत्मीय सभा

आत्मीय सभा भारत में एक दार्शनिक विचार और चर्चा मंडल थी। इस अनुष्ठान की शुरुआत राम मोहन राय ने 1815 में कोलकाता में की थी। वे दार्शनिक विषयों पर बहस और चर्चा सभा आयोजित करते थे, और स्वतंत्र और सामूहिक सोच और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए भी उपयोग करते थे।

ब्रह्म समाज

राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त 1828 में ब्रह्म समाज प्रतिष्ठा किए थे।‌ ब्रह्म समाज की शुरुआत मूल रूप से धार्मिक पाखंडों को बेनकाब करने के लिए की गई थी। भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था जहां सामाजिक बुराइयों की निंदा की गई और उन्हें समाज से दूर करने के प्रयास किए गए। समाज में धार्मिक सुधार लाने के लिए यह संस्था बनाई गई थी।

राजा राममोहन राय के पुस्तक – Raja Rammohan Roy Books

वेद उपनिषद व्यतीत राजा राम मोहन रॉय अपनी गुरु तीर्थ स्वामी देवेंद्रनाथ ठाकुर, बंकिम चंद्र विवेकानंद, राम कृष्ण एवं ईश्वर चंद्र विद्यासागर के द्वारा प्रभावित हुए थे। राम मोहन रॉय एक विद्वान, महान लेखक एवं पत्रकार थे। वेद एवं उपनिषद को वह बंगला एवं अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किए थे। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक-

  • Tafat-ul
  • Muwahhidian
  • वेदांत ग्रंथ
  • वेदांत सागर
  • केथोपनिषद (Kathopanishad)
  • इसोपनिषद (Isopanishad)
  • मांडूक्योपनिषद (Mandukyopanishad)

वह अंग्रेजी भाषा में भी बहुत सारी रचना किए थे। वह सारे हैं-

  • The Precepts of juses,
  • A Tract on the Religious Toleration
  • A Letter to Lord Amhrest of English Education
  • Petition against the Press Regulation to the Supreme Court and to the King of council
  • Rights of Hindus over Ancestral property according to the law of Bengal

राजा राम मोहन राय के योगदान – Raja Rammohan Roy contribution

राजा राम मोहन रॉय थे एक धार्मिक और समाज सुधारक। वह भारतीय समाज के लिए वह सारे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। उन्हें आधुनिक भारतीय समाज के निर्माता भी कहा जाता है। राजा राम मोहन रॉय के कार्यों में सतीदाह प्रथा हटाना महिलाओं और भारतीय समाज के लिए एक वरदान के समान है। चलिए जानते हैं उनके समाज प्रति क्या क्या योगदान रहे हैं.

धार्मिक सुधार-

1803 में प्रकाशित राजा राम मोहन रॉय के तुहफ़ात-उल-मुवाहिदीन रचना हिंदुओं के तर्कहीन धार्मिक विश्वासों और भ्रष्ट प्रथाओं को सामने लाया गया था। इसके अलावा उन्होंने 1815 में मूर्ति पूजा, निरर्थक अनुष्ठानों, जातिगत कठोरता और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कोलकाता में आत्मीय सभा नामक अनुष्ठान बनाए थे।

राजा राम मोहन रॉय धार्मिक स्वतंत्रता को नागरिकों की मुख्य अधिकार के रूप में बताए थे। वह व्यक्ति की धार्मिक समानता और स्वतंत्रता के अधिकार को पूर्ण समर्थन करते थे। उनके अनुसार समाज में धार्मिक कार्य, रीति नीति, और पूजा पद्धति मानव कल्याण के लिए होनी चाहिए। लेकिन एक स्वाधीन विचारशील दार्शनिक के रूप में वह हिंदू धर्म में प्रचलित मूर्ति पूजा को विरोध करते थे। उनके अनुसार मूर्ति पूजा भारतीय समाज को अधिक क्षति पहुंचा रहा है।

राजा राम मोहन रॉय कहते थे “धर्म वह है, जो ज्ञान का प्रेरणा हो। ईश्वर के प्रति अनुराग सृष्टि करें । लोगों के मन में दया उदारता भाग सृष्टि करें और समानता रक्षा करें।” वह धर्म के नाम पर प्रचलित अंधविश्वास और कुप्रथा को दृढ़ विरोध करते थे और इसके प्रति आवाज उठाने के लिए आव्हान देते थे।।

समाज सुधार-

राजा राम मोहन रॉय ने 1828 में ब्रह्म सभा (आगे जाकर ब्रह्म समाज बना) नाम से कलकत्ता में एक अनुषण प्रतिष्ठा किए थे उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया था।

उनके समय भारत में प्रथा और परंपराओं को
समाज में गुरुत्व दिया जाता था। जाति प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा आदि कुसंस्कार और अंधविश्वास भारतीय समाज को आघात पहुंचा रहा था। इसको संस्कार को दूर करने के लिए राजा राम मोहन रॉय उद्यम किए थे। वह तत्कालीन समाज में प्रचलित संकीर्णता विरोध में संग्राम और धर्मांधता दूर करने के लिए प्रयास किए थे।

जाति प्रथा हिंदू समाज को भाग भाग कर दिया था। इसलिए यह सारी प्रथाओं को वह तीव्र विरोध करते थे। इंटर कास्ट मैरिज के सपोर्ट में थे। राम मोहन बलिया विवाह प्रथा का विरोध करने के साथ-साथ विधवा विवाह को प्रसारित करते थे।

भारतीय समाज से सतीदाह प्रथा को दूर करने के दिन में उनका बलिष्ठ योगदान रहा है। उन्होंने अपनी कोशिशों से 1929 में ब्रिटिश बर्ड लॉर्ड विलियम बेंटिक के द्वारा सतीदहा प्रथा को बिलोप कराया था।

वह एक से अधिक विभाग प्रथा को भी विरोध किए थे। भारत में समाज सुधारक क्षेत्र में उनकी बलिष्ठ योगदान रहा है इसलिए उन्हें भारतीय नवजागरण के जनक भी कहा जाता है।

शिक्षा संस्कार-

समाज में सुधार लाने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भी सुधार लाना आवश्यक है बोलकर राजा राम मोहन रॉय ने अपनी मत दिए थे। लोगों के अंदर अज्ञानता को दूर करने के लिए शिक्षा प्रसार अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा मनुष्य को सही और गलत, न्याय अन्याय और उचित अनुचित के बीच के अंतर को भागने के लिए सहायक होती है।

पाश्चात्य देशों के साथ संपर्क बनाने मे भारत के अनेक फायदा होगा बोलकर विश्वास करते थे। वह भारत में अंग्रेजी विद्यालयों प्रतिष्ठा किए थे ।

साल 1816 में उनके उद्गम से भारत में अंग्रेजी विद्यालय प्रतिष्ठा किया गया था। 1823 में सरकार संस्कृत में शिक्षा दान के लिए एक नूतन महाविद्यालय प्रतिष्ठा करने के लिए चिंता किए थे लेकिन राम मोहन रॉय तत्कालीन बर्ड लॉर्ड Lord Amherst को एक पत्र लिखे थे जहां भारत में पाश्चात्य शिक्षा प्रचलन के लिए आवेदन किया गया था।

साल 1825 में वेदांत शास्त्रों विषय में उन्नत शिक्षा प्रसार के लिए उन्होंने वेदांत महाविद्यालय नामक शिक्षा अनुष्ठान प्रतिष्ठा किए थे। शिक्षा क्षेत्र में राजा राममोहन राय के चिंता धारा परवर्ती समय में लोगों के द्वारा और सरकार के द्वारा ग्रहण किया गया था।

राजनीतिक सुधार-

राम मोहन रॉय ने राजनीतिक सुधारों के ऊपर भी अपना आवाज उठाए थे। उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश संविधान में दी गई स्वाधीनता तथा स्वतंत्रता से अत्यंत प्रभावित थे।

सामाजिक, धार्मिक और राजनीति सुधार संक्षिप्त विवरण –

  • 1828 को ब्रह्म समाज का स्थापना की, समाज और धर्म से अंधविश्वास और कुसंस्कार को दूर करने के लिए आगे आए। ब्रह्म समाज एकेश्वरवाद के ऊपर विश्वास करता था।
  • सती प्रथा का दृड़ विरोध करते थे, जिसका फल स्वरुप 1829 में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून बनाए जिसका श्रेय राजा राम मोहन रॉय को जाता है।
  • राजा राम मोहन रॉय बाल विवाह और पर्दा प्रथा का विरोध करते थे।
  • राजा राममोहन राय बहुविवाह प्रथा को विरोध करते थे। हालांकि उनकी तीन तीन शादियां हुई थी, 9 साल की उम्र में ही उनका विवाह हो गया था।
  • बहुत शैक्षणिक सुधार लाएं , जिसके लिए उन्होंने 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना की और 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी. पाश्चात्य साहित्य के ऊपर बहुत प्रभावित थे इसलिए उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा के लिए सरकार को पत्र लिखे थे।
  • वह समाज में कराधान का सुधार लाएं, उन्होंने बंगाल में चल रहे किसानों के ऊपर चल रही दमनकारी नीतियों का विरोध किया। और कौर मुक्त भूमि की मांग की थी।
  • राजनीतिक सुधारों में भी उनकी दबदबा प्रबल रहा है। उन्होंने नागरिक की स्वतंत्रता के ऊपर जोर दिया। न्यायिक व्यवस्था के ऊपर सुधार लाएं इसके लिए उन्होंने 1827 में आए ज्यूरी एक विरोध किया।

अंतिम शब्द

यह थी दोस्तों राजा राम मोहन रॉय के बारे में कुछ जानकारी, आशा करता हूं आपको यह आर्टिकल राजा राम मोहन रॉय जीवन परिचय से जुड़े जानकारियां पसंद आई होगी। ऐसे ही जानकारियां उपलब्ध कराना हमारा मूल प्रयास है। ऐसे ही जानकारियां और पढ़ने के लिए हमारे अगले पोस्ट को विजिट करना ना भूले। धन्यवाद दोस्तों हमारे यह आर्टिकल के साथ अंत तक जुड़े रहने के लिए

Categories: BIOGRAPHY

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